इस बीच उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका के प्रमुख तमिल सांसदों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में तमिल सांसदों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़े तमिलों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में मदद करने की गुज़ारिश की है.
तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) के नेता आर संपनथन के नेतृत्व में सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग में मंगलवार को पहुँचा था. इसी दौरान इस प्रतिनिधिमंडल ने मोदी के नाम पत्र सौंपा था.
भारतीय प्रधानमंत्री को पत्र लिखने को लेकर श्रीलंका की सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है. गोटाभाया राजपक्षे सरकार में ऊर्जा मंत्री उदया गम्मनपिला ने बुधवार को कहा कि संविधान के 13वें संशोधन को लागू करने की मांग तमिल नेशनल एलायंस को देश की चुनी हुई सरकार के सामने उठानी चाहिए न कि भारतीय प्रधानमंत्री के सामने. उदया ने कहा कि श्रीलंका एक संप्रभु राष्ट्र है और यह भारतीय यूनियन का हिस्सा नहीं है.
उदया ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ”अगर हमारी तमिल पार्टियां संविधान के 13वें संशोधन को लागू नहीं करने को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें श्रीलंका के राष्ट्रपति के पास जाना चाहिए ना भारतीय प्रधानमंत्री के पास. हम एक संप्रभु देश हैं. श्रीलंका कोई भारतीय यूनियन का हिस्सा नहीं है. तमिल भाइयों को मुल्क की सरकार के सामने अपनी मांग रखनी चाहिए.”
A delegation of #Tamil politicians led by Hon'ble @R_Sampanthan called on High Commissioner and handed over a letter addressed to Prime Minister @narendramodi. pic.twitter.com/rFkgbxeZJA
— India in Sri Lanka (@IndiainSL) January 18, 2022
उदया ने तमिलों के पत्र पर जताई गई अपनी आपत्ति से जुड़ी कोलंबो गजट की ख़बर को रीट्वीट किया है. कोलंबो गज़ट ने उदया के बयान को हेडिंग बनाया है. इस ख़बर की हेडिंग है- उदया ने तमिल सांसदों को याद दिलाया, श्रीलंका भारत का हिस्सा नहीं.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने तमिल प्रतिनिधिमंडल के पत्र में क्या लिखा है, इस पर मंगलवार को एक ख़बर प्रकाशित की थी. हिन्दू के मुताबिक़ पत्र में 2015 में प्रधानमंत्री मोदी के श्रीलंकाई संसद के संबोधन का भी ज़िक़्र किया गया है. इस संबोधन में पीएम मोदी ने श्रीलंका में कोऑपरेटिव फ़ेडरलिजम (सहकारी संघवाद) की बात की थी.
तमिल सांसदों ने पत्र में लिखा है, ”उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में तमिल हमेशा बहुमत में रहे हैं. तमिलों के लिए हम एक संघीय ढांचे के आधार पर एक राजनीतिक समाधान को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हमने संवैधानिक सुधार के प्रस्ताव को लगातार रखा है.” सांसदों ने भारत सरकार से संविधान के 13वें संशोधन को लागू कराने के लिए श्रीलंका की सरकार पर दबाव डालने के लिए कहा है.
भारत और श्रीलंका के रिश्तों में तमिलों का मुद्दा भी काफ़ी अहम है. पिछले साल अक्टूबर में भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के श्रीलंका दौरे के दौरान भी तमिलों का मुद्दा उठाया गया था. भारत चाहता है कि श्रीलंका अपने संविधान के 13वें संशोधन का पालन करे. यह संशोधन 1987 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच समझौते के बाद हुआ था.
इसके तहत श्रीलंका के नौ प्रांतों में काउंसिल को सत्ता में साझीदार बनाने की बात है. इसका मक़सद ये था कि श्रीलंका में तमिलों और सिंहलियों का जो संघर्ष है, उसे रोका जा सके. 13वें संशोधन के ज़रिए प्रांतीय परिषद बनाने की बात थी ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो सके.
इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, हाउसिंग और भूमि से जुड़े फ़ैसले लेने का अधिकार प्रांतीय परिषद को देने की बात थी. लेकिन इनमें से कई चीज़ें लागू नहीं हो सकीं. भारत चाहता है कि श्रीलंका इसे लागू करे ताकि जाफ़ना में तमिलों को अपने लिए नीतिगत स्तर पर फ़ैसला लेने का अधिकार मिले.
भारत को श्रीलंका की सरकार पर 13वां संविधान संशोधन लागू करने पर संदेह रहा है. 2011 में अमेरिकी दूतावास के केबल्स, विकीलीक्स के ज़रिए द हिन्दू को मिले थे. केबल्स से पता चला था कि भारत इस संशोधन को लेकर सक्रिय रहा, लेकिन श्रीलंका तैयार नहीं हुआ. लेकिन भारत के लिए तमिल प्रश्न चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच प्राथमिकता खोने लगता है.
भारत चाहता है कि श्रीलंका संविधान के 13वें संशोधन के सारे प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करे. इनमें सत्ता का हस्तांतरण और जल्द ही प्रांतीय परिषदों के चुनाव करने की बात शामिल है. भारतीय विदेश सचिव ने कहा था कि 34 साल पुराना क़ानून श्रीलंका में अब भी विवादित ही है. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने कहा था कि श्रीलंकाई संविधान में 13वें संशोधन की कमज़ोरी और मज़बूती को समझना बेहद ज़रूरी है. गोटाभाया ने कहा था कि इस हिसाब से ही वार्ता आगे बढ़ाने की ज़रूरत है.
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