भगवान बुद्ध द्वारा उपदेशित महा पुण्यशाली ‘उपोसथ व्रत ‘
एक समय जब भगवान श्रावस्ती में मिगार माता विशाखा के पूर्वाराम प्रसाद में विहार कर रहे थे तब दाताओ में अग्र की उपाधि प्राप्त माता विशाखा ने भगवान से कहा की ” भंते आज मेंने उपोसथ रखा है ”
तब भगवान् ने उपोसथ के फल के बारे में बताते हुआ कहा की उस दिन अष्ट शील का पालन करना चाहिए { हिंसा नही करना, चोरी नहीं करना , व्याभिचार नही करना , जूठ एवं कडवी वाणी नही बोलना, व्यसन नही करना , दोपहर के बाद अर्हन्तो की भाँती अन्न न ग्रहण कर एकाहारी होना, ऊँची आराम दायक सय्या से विरत होना और नाचने, गाने, बजाने , तमाशा देखने और माला गंध विलेपन आदि से दूर रहेना }. अष्ट शीलो का पालन कर बुद्ध शाशन में उसकी श्रध्दा और प्रीती बढती है.
भगवान ने कहा की “विशाखे, इस प्रकार आर्य उपोसथ होता है. इस प्रकार रखा गया आर्य उपोसथ महान फल वाला होता है. यह महान प्रकाश वाला होता है तथा बहुत दूर तक व्याप्त होने वाला होता है”
देवता और मनुष्यों के शास्ता भगवान सम्यक सम्बुद्ध ने कहा ” विशाखे जैसे कोई इन सोलह महान सप्त- रत्न -बहुल महाजनपदो का ऐश्वर्याधिपत्य राज्य करें – जैसे अंगो का, मग्धो का, कशियों का, कोशलों का , वज्जियो का, मल्लो का , चेदियों का , वंगो का, कुरुओ का , पंचालो का , मत्स्यो का , शौर शेनो का , अश्मको का , अवन्तियो का , गंधारो का तथा क्म्बोजो का वह अष्टांग उपोशथ के सोलवी कला के भी बराबर नही होता. यह किसलिए विशाखे ! दिव्य सुख की तुलना में मानुषी राज्य बिचारे का कुछ मूल्य नहीं |
” विशाखे, जितना समय मनुष्यों का पचास वर्ष होता है वह चातुम्महाराजिक देवताओं का एक रात दिन होता है. उस रात से तिस रातो का महिना. उस महीने से बारह महीनो का वर्ष. उस वर्ष से पांचसो वर्ष चातुम्महाराजिक देवताओं की आयु सीमा. विशाखे सम्भव है की अष्टांगिक उपोसथ करने वाली स्त्री या पुरुष शरीर छूटने पर, मरने के बाद चातुम्म्हाराजिक देवताओ का सहवासी हो जाए. विशाखे, इसलिए कहा गया की दिव्य सुख के आगे बिचारे मानुषी सुख का कोई मूल्य नही!”
इस प्रकार भगवान् ने क्रमश: तातविंश देवताओ, याम देवताओ, तुषित दवताओ, निम्मान रति देवताओ की दिव्य आयु सीमा बताते हुवे अंत में परीनिम्मितवसवत्ती देवताओ के बारें मे बताते हुए कहा ” विशाखे, जितना समय मनुष्यों का सोलह सौ वर्ष होता है उतना परीनिम्मितवसवत्ती देवताओ का एक रात-दिन होता है. उस रात से तीस रातो का महिना. उस महीने से बारह महीनो का वर्ष. उस वर्ष से सोलह हजार वर्ष परीनिम्मीवसवत्ती देवताओ की आयु की सीमा. विशाखे, सम्भव है की अष्टांगिक उपोसथ करने वाला स्त्री या पुरुष शरीर छूटने पर, मरने के बाद, परिनिम्मीवसवत्ती देवताओ का सहवासी हो जाए. विशाखे! इसीलिए यह कहा गया की दिव्य सुख की तुलना में मानुषी राज्य बेचारे का कुछ मूल्य नही.”
उपोसथ इन दिनों में किया जाता है : दो अष्टमी, पूर्णिमा और अमावश्या के दिन
धर्म राज भगवान बुद्ध ने दुखो का अंत करने वाले इस अष्टांग उपोसथ को प्रकाशित किया है. यह सुत्त मिगार माता के पूर्वाराम में प्रसाद में माता विशाखा को उपदेशित किया था , इन बहुमूल्य वाणी को विपश्यना आचार्यो द्वारा सम्भाला गया और पुन: पुन: अनुवादित होता रहा.
भगवान बुद्ध को नमस्कार, जिन जिन विपश्यना आचार्यो ने बहुमूल्य वाणी को सम्भाले रक्खा उन सभी अरहंतो को मेरा नमस्कार , जिन जिन आचार्यो ने इन सुत्तो का अनुवाद किया हो उन सभी को मेरा नमस्कार, यह सुत्त लिखने से मुझमें जो सुख, पुण्य उत्तपन हुआ है उस पुण्य में सब भागीदार होय, सभी के शुभ संकल्प पूर्णिमा के चाँद की भाँती परिपूर्ण हो…